चितवन कश्यप तुम दोनो को अकेले ही संभाला है, और ये सब करने में शायद तुम जैसा बचपन चाहते थे, मैं चाह कर भी तुम दोनो को नहीं दे पाई। आज बैठे बैठे कुछ लिखने को मन किया तो एक कविता लिख डाली।
ये कविता उन माओ को भी समर्पित है जो अपना पूरा जीवन अपने घर और बच्चो को संवारने और संभालने में लगा देती है । ना अपना ना अपने शौक ,अपनी इच्छाओं का ध्यान रखती है । बस बच्चों और परिवार के हर सदस्य को खुश करने में ही अपनी पूरी जिंदगी बिता देती है और उम्र के एक पड़ाव पर जब अपने आप को अकेला महसूस करती है तब सोचती है काश मैं भी खुल कर जी पाती। काश बच्चो संग थोड़ा सा ओर समय बिता पाती । काश मैं अपने लिए भी थोड़ा सा जी पाती
काश.
व्यस्त रही मैं इतना साल, महीने, दिन
बिता ना पाई तुम संग खुल कर वो पल छिन
तुम लाए जब वो खिलौना, मां संग मेरे खेलो ना
घर के काम पड़े है बाकी, बेटा भाई संग खेल लो ना
कपड़े इस्तरी करने है, खाना बनाना है
अभी तो घर भी साफ करना है
ऐसा कह जल्दी ही दरवाजा पार कर जाती
काश मैं थोड़ी देर और रुक जाती
तुम्हारी भोली बातों में डूब जाती
काश ...तुम्हें परियों की कहानी सुना पाती
बहला कर तुम्हे सुलाना, फिर घर के कामों में जुट जाना
सास -ससुर, देवर -जेठ , ननद -नंदोइयो की आवभगत
फिर बाजार जाकर सब्जी -तरकारी भी लाना
घर के ढेरो कामों को छोड़ ,थोड़ा ओर समय तुम्हे दे पाती
काश मैं भी तुम संग तुम्हारा बचपन पूरा जी पाती
जिम्मेदारियों का बोझ थोड़ा कम कर, तुम संग बच्ची बन जाती
घर संभालना ,फिर जाकर दुकान खोलना
जिंदगी की भाग-दौड़ में खुद से दूर होती गई
बच्चो के भविष्य को संवारने की खातिर अपना वर्तमान खोती गई
जिन्दगी कितनी छोटी है, दिन महीने साल चुटकी में बीत गए
मेरे छोटे बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो गए
अपनी अपनी ज़िंदगी में कितने मस्त हो गए
मेरे दिन जो व्यस्त रहते थे अब कितने शांत हो गए
किताबे और खिलौने, संदूको में बंद हो गए
विदेश जाकर बच्चे, थोड़ा सा दूर हो गए
मेरी सलाह और मशवरे की उन्हे जरूरत नहीं है अब
बच्चे तो नए जमाने के रंगढंग में मशरूफ हो गए
अब नही बोलता कोई साथ खेलने को
सोते समय कोई कहानी सुनाने को
सूना-सूना सा घर है,खाली खाली मन
बिस्तर पर लेटे ताकती रहती हूं अब छत
काश...बीता समय वापस ला पाती,
तुम संग एक बार फिर से तुम्हारा बचपन जी पाती
काश. मैं अपने लिए भी थोड़ा जी पाती
ख्वाहिशों का आदी दिल काश ये समझ पाता,
जाता हुआ मौसम कभी लौटकर ना आया है,
बीत गया जो पल वो बीता ही रह जाता है
और
बीते दिनों को भी कभी कोई लोटा पाया है
काश फिर जीने की वजह मिल जाए,
साथ जितना भी बिताया वो पल मिल जाए.
अपनी आँखें बंद कर लेती हूं ये सोचकर
क्या पता ख़्वाबों में गुज़रा हुआ पल मिल जाए
अंत में सिर्फ इतना ही कहना है
जी लो जो भी पल है, कल किसने देखा है
बिता लो अपनो संग कुछ पल ,कल का कुछ नही भरोसा है।
हो सके तो जी लो हर पल,कल किसने देखा है
बिता लो अपनो संग कुछ पल ,कल का कुछ नही भरोसा है
काश की ज़िन्दगी में किसी के काश न रहे,
खुश हों सब ज़िंदगी से नई तलाश न रहे.
Written by
मधु आनन्द चंढोक
7/11/2022
English Translation by Sameer Kohli
Chitvan & Kashyap what I couldn’t do for you then, I’m sorry for that although it was not by design. I’ve raised you up alone, and in doing that I was not able to give the childhood that you must have wanted. Today I felt like writing something, so have penned down a few verses.
This poem is dedicated to those mothers who spend their entire lives looking after their homes and children. Ignoring themselves and their desires, they devote themselves to their family and kids. At a point in life they find themselves alone and wish they had lived a little more for themselves, spent some more time with children.
I wish.
Days, Months and Years have Gone by
Couldn’t Spend those Moments with Each Other
When You brought that Toy to Play with Me
Laden with Chores I asked You to Play with Your Brother
Cooking, Cleaning, Ironing- I Would Walk Past and Away,
I Wish I Had Stayed a Minute More
Immersed Myself in Your Innocent Ways
I Wish I had told You Stories of Folk & Lore
Cajoling You to Sleep to get done with House Work
Then Switching Roles to Entertaining Guests and Family
I Wish I Could have Shied From Some of these Responsibilities
To Have lived Your Childhood, like a Child- Sweet & Happily
Running the Home, Running the Shop
I Kept Running Away From My Own Life
In Securing a Future For My Precious Children
I Refused to Hear My Own Little Cries
Days, Months and Years Have Swept by
My Little ones Have Grown Up so Soon
They are Walking about their Own Lives
And I Today Sit Back and Watch the Moon
The Books and Toys are Stowed Away
Kids Have Packed off to Distant Lands
They don’t Need My Hand Any More
To Brave the Unknown, the Storms of the Sands
Now there is No One to Pull Me to Play
Or Push Me to Tell a Bedtime Story
The Rooms are Vacant, My Heart Dull
I Look up From My Bed at the Ceiling; the Walls of Past Glory
I Wish I Could turn the Clock Back
To Spend Your childhood With You Again
Wish I Could Live More of You
And a Little bit of Myself, For a Change
I Wish this Longing Heart Could Understand
The Winds of Change Cannot be Reversed
The moments gone by once
Can Never Be Relived, only Nursed
I Wish I Get a Reason For My Life Again
And Get to Live the Time Spent Together With You
I Close My Eyes Hoping For the Best
Maybe it’s in My Dreams that My Wish comes True
As I Sign off, I Wish to Give One Advice
Live the Time You Have and Live it Today
Spend Some Time With Yourself, For Yourself
‘Coz Tomorrow- No One Knows What it Holds in its Sway
In this World of Desires, Let No One’s Wish Remain Unfulfilled
May Joy Prevail, and the Search for a Purpose Remain Fulfilled