Saturday, 28 March 2015

Bihar Mid day meal tragedy

Through this poem I have tried to show the feelings of a girl who died in that tragedy after eating Mid day Meal at a primary school in the village of Dharmashati Gandaman in the Saran District of the Indian  state of Bihar. That meal contaminated with Pesticide. 27 to 30 children died n angry parents buried children dead bodies in that school compound. So sad.


Mid day meal 

Mein  marna nahi chahate thi,
Apni zindagi bharpur jeena chahati thi.
Unmukat panchi Ke tarah uunchi udan bharana chahati thi,
Maa Bapu Ke budape  ka Sahara banana chahati thi.

Kitne Aarmaan  they, ghar Ke garibi dur bhagaungi,
Jab mein pad likh badi Ho afsar ban itrungi.
Chamchamati gadi mein Maa Bapu ko bithaungi ,
Bade bade kaam kar Desh ka Gaurav badungi .
Apne picchade gaun ( village) ko behtar kar paungi,
Aur Maa Bapu Ke liye pakka ghar banaungi .

Saare sapne bikhar Gaye , sheeshe Ke tarah toot Gaye.
Mid day Ke meal se kitno Ke ghar ujar Gaye.

Jao jakar yeh Khanna principal aur netaou ( leaders ) ko khilao,
Unko bhi toh pesticide ka taste karao.
Un khudgarz paise Ke bhukhe logo ko jakar  yeh ahsaas  karao,

Ke apno se bicchadne ka dard kaisa hota hai ,
Pet Ke jayo ko khone par kaisa lagta hai.
Jeevan kaise ek pal mein suna Ho jata hai,
Jab ghar ka Chirag jalne se pehle he bujh jata hai .

Bhatak rahi hai meri aatma school Ke es prangan mein,
Puch rahi hai school aur Desh Ke nonjwano ( youngsters ) se .
Kya garib ka jeeean itna sasta hai,
Kya hamko bhi jeena ka maan nahi karata hai.

Abhi toh mere khelane khane Ke din they,
Maa Ke gaud mein chup so janne Ke din they.
Bapu Ke kandhe baith laad ladane Ke din they,
Bhai Ke a seem Pyar mein doob Jane Ke din they.

Sab kuch hamara tumahare khilaye khane me Cheen liya,
Hamare pure Gaun ( village )  ko aseem dukh me gher liya.

Desh ko chalane walo, apni jaibe bharne walo,
Ab toh sambhal jao,  apni neend se jag jao.
Kahi aisa na Ho kahi ek din tum yeh mid day meal khao,
Aur tabut ( coffin )   lete phir 31 topo Ke salami khao.

Written on  20 th July 2013


Mid day meal 

  एक लड़की जो इस मिड डे मील को खाकर इस दुनिया से चली  गयी उस  लड़की की आत्मा कैसा महसूस  करती होगी , उसे इस कविता में बताने की मेरी छोटी सी कोशिश , 

मैं  मरना नहीं  चाहती  थी ...
अपनी  ज़िन्दगी  भरपूर  जीना  चाहती  थी ...
उन्मुकत  पंछी की  तरह  ऊंची  उड़ान  भरना  चाहती  थी !!
माँ  बापू  के  बुढ़ापे  का  सहारा  बनना  चाहती  थी ! 
कितने  अरमान  थे, घर  के  गरीबी  दूर  भगाऊँगी !!
जब  में  पढ़  - लिख  बड़ी  हो  अफसर  बन  इतराऊँगी...  
चमचमाती  गाड़ी  में  माँ  बापू  को  बिठाऊंगी  
बड़े  बड़े  काम  कर  देश  का  गौरव  बढाउंगी !!
अपने  पिछड़े  गाँव को  बेहतर  कर  पाऊँगी 
और  माँ  बापू  के  लिए  पक्का  घर  बनाउंगी !! 


सारे  सपने  बिखर  गए  , शीशे  की  तरह  टूट  गए 
मिड-डे  के  मील  से  कितनो  के  घर  उजड़  गए 

जाओ  जाकर  यह  खाना  प्रिंसिपल  और  नेताओ को  खिलाओ 
उनको  भी  तो  pesticide का  टेस्ट  कराओ !!
उन  खुदगर्ज़  पैसे  के  भूखे  लोगो  को  जाकर  यह  अहसास  कराओ 
के  अपनों  से  बिछड़ने  का  दर्द  कैसा  होता  है ... 
पेट के  जायो को  खोने  पर  कैसा  लगता  है !!
जीवन  कैसे  एक  पल  मैं  सुना  हो  जाता  है... 
जब  घर  का  चिराग  जलने  से  पहले  ही बुझ  जाता  है 

भटक  रही  है  मेरी  आत्मा  स्कूल  के  इस  प्रांगण  मैं 
पूछ  रही  है  स्कूल  और  देश  के  नौजवानो  से 
क्या  गरीब  का    जीवन इतना  सस्ता  है 
क्या  हमको  भी जीने का  मन  नहीं  करता  है ?

अभी  तो  मेरे  खेलने  खाने  के  दिन  थे...
माँ  की गोद  मैं  
छुप  सो  जाने  के  दिन  थे 
बापू  के  कंधे  बैठ  लाड  लड़ाने  के  दिन  थे 
भाई  के  असीम  प्यार  में  डूब  जाने  के  दिन  थे 

सब  कुछ  हमारा  तुम्हारे  खिलाये  खाने  ने  छीन  लिया 
हमारे पूरे  गाॉव  को  असीम  दुःख  में  घेर  लिया 

देश  को  चलने  वालो , अपनी  जेब  भरने  वालो 
अब  तो  संभल  जाओ , अपनी  नींद  से  जग  जाओ 
कही  ऐसा  न  हो  कहीं  एक  दिन  तुम  यह  mid day meal खाओ 
और  ताबूत में  लेटे  फिर  २१  टोपो  की  सलामी  खाओ !!


Written and  translate by

Madhu Anand Chandhock

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